Tuesday, November 25, 2008

एक हिन्दुस्तानी का दिल

मैं एक हिन्दुस्तानी जिसके दिल में एक हिन्दुस्तानी दिल धड़कता है आज अपने देच्चवासियों से कुछ कहना चाहता है। हो सकता है जो मैं कहने जा रहा हूँ वो आपको सही न लगे पर जो आवाज+ मेरे दिल से आयी वही आवाज+ आपके सामने लिख कर बयान रहा हूँ।

हम हिन्दुस्तानी आजादी के ६० साल बाद भी कुछ गमों को नहीं भुला पायें हैं। अंग्रेजों के दिये हुए घावों से अभी तक उभर नहीं पाये हैं। सोने की चिड़िया कहे जाने वाले हमारे देच्च को अंगे्रज लूट कर ले गये। देच्च को बर्बाद कर के भाग गये और देच्च के दो टुकड़े करा गये। सैकड़ों रियासतों में बँटे हिन्दुस्तान में अंग्रेज आये और ३०० सालों तक राज किया। हिन्दुस्तानी अंगे्रजों के जुल्म से इतने त्रस्त हुए कि आपसी दुच्चमनी भुला कर अंगे्रजों के खिलाफ एक जुट खड़े हो गये और अंगे्रजों को दुम दबा कर भागना पड़ा। भले ही आज हिन्दुस्तान के दो टुकड़े हो गये हों पर सैकड़ो टुकड़ों से तो दो ही भले। अंग्रेज हमारे देच्च से धन-दौलत सोना चाँदी ले गये पर अंग्रेजो की वज+ह से ही देच्च वासियों के दिल में एक दूसरे के प्रति जो मुहब्बत जागी। यह मोहब्बहत किसी बहुमूल्य वस्तु से कम है क्या ? भले ही अंग्रेज सोने की चिड़िया हमारे देच्च से ले गये पर उस चिड़िया के कुछ पंख भारत में ही छोड़ गये। यह पंख हैं देच्च की एकता और अखंण्डता, देच्च वासियों का एक दूसरे के प्रति प्रेम।

आजादी के ६० सालों में देच्च में इतने परिवर्तन हुए हैं जितने गुलामी के ३०० सालों में भी नहीं हुए थे। देच्च ने आर्थिक क्षेत्र में बहुत उन्नति की जिसके पीछे कृषि का योगदान सराहनीय है। देच्च में गरीबी की प्रतिच्चतता में बहुत कमी आयी है और यह प्रतिच्चत निरन्तर कम होता जा रहा है। प्रति व्यक्ति आय में १२,४१६ रुपये है जो सुखमय जीवन जीने के लिए पर्याप्त है। विदेच्चियों को भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर भरोसा है तभी तो वे अपना धन भारत में बिना किसी डर के लगा रहे हैं। आर्थिक मंदी के इस दौर में अमेरिका पर ऋण का बोझ इतना पड़ा कि वहाँ की कितनी ही कम्पनियों का दीवाला निकल गया और अन्य देच्च पर इस मंदी का इतना असर पड़ा कि वहाँ भुखमरी के हालात पैदा हो गये। ऐसे में भारत उन देच्चों में शामिल है जिन पर इस मंदी की मार सबसे कम पड़ी। इससे उचित देच्च की आर्थिक सुदृढ़ता का उदाहरण मेरे पास नहीं है।

भारत की साक्षरता २००१ की जनगणना के अनुसार ६५।३८ प्रतिच्चत है जो एक देच्च की ठीक-ठाक स्थिति को बतलाती है। प्रबन्ध च्चिक्षा की बात करें तो आईआईएम अहमदाबाद ने विच्च्व के टॉप १०० बिजनेस स्कूलों में ९१वाँ स्थान हासिल किया है और कैरियर के नए अवसरों के मामले में इकानामिस्ट १०० की सूची में दूसरे स्थान पर है। भारत में तकनीकी च्चिक्षा की मिसाल इसी बात से दी जा सकती है कि भारत चांद पर अपने देच्च का ध्वज फहराने वाला दुनिया का छठा देच्च बन गया है। इससे पहले सिर्फ अमेरिका, रूस, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, चीन और जापान जैसे विकसित देच्चों के ध्वज ही चांद पर लहरा रहे थे। अब एक विकासच्चील देच्च का भी नाम इन नामचीन देच्चों की सूची में शामिल हो गया जो सभी हिन्दुस्तानियों के लिए गर्व की बात है।

मनोरंजन की दुनिया में भारत की बादच्चाहत इन सभी क्षेत्रों से भी आगे है। देच्च की अभी तक दो फिल्में आस्कर के लिए नामांकित हो चुकीं हैं। देच्च में सिनेमा का कारोबार दुनिया में दूसरे स्थान पर है।

इतनी सब खूबियों के बाद भी क्या कारण है कि भारत अभी तक सिर्फ विकासच्चील देच्चों की कतार में ही है विकसित राष्ट्रों की सूची में शामिल नहीं हुआ। पहली नज+र में लाचार राजनीतिक संरचना और ढ़ीली न्याय प्रणाली को इसके लिए दोषी ठहराया जा सकता है। देच्च में फैलते आतंकवाद के लिए आप भी इसी को दोषी ठहराते होगें।

पर हमारे देच्च को बर्बाद करने के लिए तो किसी बाहरी ताकत या किसी आतंकवाद समूह की जरुरत नहीं है। यह काम तो हम हिन्दुस्तानी बखूबी संभाल रहे हैं। हमारे देच्च में आतंकवाद की समस्या सबसे प्रबल है पर उससे भी बड़ी समस्या क्षेत्रवाद और धर्मवाद की है। हमारे दिलों में देच्चवाद की भावना न जाने कब क्षेत्रवाद और धर्मवाद में बदल गई। कुछ राजनीतिक पार्टियां अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करने के लिए लोगों को धर्म और क्षेत्र के रुप में बाँट रहीं हैं और इससे नुकसान किसी राजनीतिक पार्टी या राजनेता का नहीं देच्च का हो रहा है। राजनीतिक पार्टियों का क्या है चुनाव को आता देख किसी मुद्दे पर अपना चुनाव प्रचार करेंगी कभी धर्म के नाम पर तो कभी क्षेत्र के नाम पर। हिन्दुस्तानी भाईंयों को आपस में ही लड़वायेगीं और खुद लाभ के रुप में लोगों के वोट खयेगीं।

इसलिए भारत को बर्बाद करने के लिए किसी विदेच्ची ताकत या किसी आतंकी गिरोह की कोई जरुरत नहीं है इसके लिए तो तानाच्चाही करने वाली दो-चार राजनीतिक पार्टियां और उनके दिखाये गये मार्ग पर चलने वाले कुछ लोग चाहिए। बस इन्हीं से भारत को बर्बाद करने का काम हो जायेगा।

आज हर किसी की जुबान से बस यह सुनाई देता है कि मैं हिन्दू हूँ, वो मुस्लमान है, तुम सिख हो या हम उत्तर भारतीय हैैंं और तुम दक्षिण भारतीय। कोई भी यह नहीं कहता कि मैं हिन्दुस्तानी हूँ, हिन्दुस्तान का रहने वाला हूँ। देच्च में देच्चवाद का अकाल पड़ने लगा है और धर्मवाद और क्षेत्रवाद की बाढ़ सी आयी हुई है। यदि जल्द ही इस बाढ़ पर बांध नहीं बाधां गया तो यह बाढ़ देच्च को जातिवाद, भ्रष्टाचार आदि नामों के रोग से ग्रस्त करके जायेगी जिसका नतीजा यह होगा कि फिर कोई दूसरा देच्च हममें देच्चवाद की भावना जगाने के लिए हमारे देच्च पर ३०० या उससे भी कही अधिक वर्ष तक राज करेगा और सोने की चिड़िया के नुचे हुए पंख भी अपने साथ ले जायेगा।

Monday, November 10, 2008

मेरा दुखः

कई दिनों से मैंने कोई लेख नहीं लिखा। इसका कारण है मेरा दुखः। मैं हर दुखः का सामना मुस्कुरा के करता हूँ, भगवान ने मुझे कुछ ऐसा ही बनाया है। पर इन दिनों जो दुखः मुझे घेरे हुए है उसका सामना मैं नहीं कर पा रहा हूँ। शायद इसी कारण से कुछ लिख भी नहीं पा रहा हूँ। दो महान भारतीय खिलाड़ियों का सन्यास मेरे दुखः का कारण है। दादा और जंबो अब भारतीय टीम में नहीं खेलेगें इससे बड़े दुखः की बात मेरे लिए और क्या हो सकती है। दादा हमेच्चा से ही मेरे प्रीय बल्लेबाज रहें हैं और जंबो की तारीफ मेरे मुँह से छोटे मुँह बड़ी बात होगी। इन दोनों खिलाड़ियों ने अपने जीवन के कई साल भारत की सेवा में बितायें हैं। भारतीय टीम में इनका योगदान कभी भी भुलाया नहीं जा सकेगा और इन दोनों खिलाड़ियों को कौन भारतवासी अपनी यादों से और अपने दिल से निकालना चाहेगा। यह दोनों महान खिलाड़ी humesha हमारें दिलों में रहेगें।
आज मैं दुखीः हूँ पर रो नहीं रहा हूँ। जरुरी नहीं है कि दुखी होने पर आँखों से आँसू निकलें। आज मेरे आँसू मेरी आँखों से नहीं मेरी कलम से निकल रहें हैं। पर मैं अपने दुखः को यह सोच कर कम कर लेता हूँ कि जो आया है वो जायेगा भी। दादा और जंबों ने भारतीय क्रिकेट टीम की बहुत सेवा की अब इतना तो हक बनता ही है वो आराम करें। शायद यही सोच कर मैं अपने दुखः को कम करता हूँ और उनका भावी जीवन सुखमय हो इसकी कामना भगवान से करता हूँ। उनके सुख को अपने दुखः से ज्यादा देख कर मैं अपने दुखः को कम करुँगा।
मैंने अपने दुखः को आप के साथ बाँटा क्योंकि मैं यह मानता हूँ कि एक अच्छा साथी दुखः को आधा और सुख को दो गुना कर देता है। आप के साथ से मेरा दुखः कम हो जायेगा। मैंने आप को अपने दुखः में शमिल किया इस बात के लिए मैं आप से माफी चाहता हूँ पर इस बात का वायदा करताा हूँ कि अपने सुख मैं सबसे पहले आप को ही शामिल करुँगा।