Thursday, December 11, 2008

विकसित होता प्रेम

न्यून्तम उम्र-१४ वर्ष
शैक्षिक योग्यता-सिर्फ अंगे्रजी अच्छी बोलनी आनी चाहिए
आवच्च्यक वस्तु-लाड़कों के लिए निजी मोबाइल और मोटर बाइक, लड़कियों के लिए सिर्फ निजी मोबाइल
अतिरिक्त आवच्च्यक वस्तुऐं-पिता जी के पैसों का ढेर सारा पेट्रोल
साक्षात्कार की तिथी-१४ फरवरी वर्ष कोई भी हो
साथ लाने के लिए वस्तुएं-कोई डिग्री या प्रमाण पत्र नहीं बस लाल गुलाब और चॉकलेट का डिब्बा
यह योग्याताएं किसी सरकारी या प्राइवेट क्षेत्र में नौकरी पाने के लिए नहीं हैं यह योग्यताएं तो प्रेम के क्षेत्र में अपना पहला कदम रखने के लिए आवच्च्यक हैं। एक बार पहला कदम रख दिया तो फिर तो एक के बाद एक कम्पनी छोड़ कर आप बड़ी कम्पनी तक चलते ही जायेगें, तजुरबा (एक्सपीरियन्स) जो हो जायेगा।
यही है आज की युवा सोच और प्रेम का विकास। समय के परिवर्तन के साथ बहुत सी वस्तुएं बदली उन्हीं में से एक था प्रेम। प्रेम शब्द के अर्थ का भी समय के साथ विकास हुआ। कभी कविताओं में दिखने वाला प्रेम आज बाग-बगीचों, नदी किनारों, चिड़िया घरों, होटलों, रेस्ट्रों, कॉलेजों की केन्टीनों में दिखने लगा है। यह है प्रेम का विकास। इसके पीछे युवा सोच की कड़ी मेहनत है और उस युवा सोच के पीछे कौन हैं ? शायद संगत, शायद सिनेमा, या शायद राष्ट्र का चौथा सतम्भ मीडिया। संचार की देवी मीडिया। मीडिया ने ही देच्च को १४ फरवरी के दिन का तोहफा दिया और साथ ही उसके अर्थ का स्वरुप मूल रुप से बदल दिया।
देच्च में क्या हो रहा है इससे ज्यादा चिन्ता मीडिया को इस बात की होती है कि करीना कपूर के जीवन में क्या हो रहा है ? रॉ के प्रमुख बदले उनका नाम सुनाई भी नहीं दिया पर करीना ने कितने बॉयफ्रैण्ड बदले इसकी खबर सबको दी गई। भारत ने पाकिस्तान से किन मुद्दों पर बात की इससे बड़ी खबर यह बनी कि राखी सावंत ने अपने बॉयफ्रैण्ड अभिषेक को कितने थपड़ मारे हैं। इन्हीं सब को देख कर अपने-अपने फ्रैण्ड बनाने का फैच्चन बन गया है। करीना के बॉयफ्रैण्ड बदलने पर अपने फ्रैण्ड को भी बदलना है पुराना जो हो गया है।
अब तो 1 से पेट नहीं भरता है ये दिल माँगें मोर। १,२,३,४............... बस बस बस यह दिल है कि कोई धर्मच्चाला नहीं जिसमें जितने मुसाफिर आयें उतने ठहर सकें। एक सच्चे प्रेम की चाह में कितनो को ट्राई करना पड़ता है यह तो दिल ही जानता है।
इन सबके पीछे मीडिया के अलावा अभिभावकों की भी जवाबदेही बनती है। अभिभावकों का जीवन इतना वयस्त होता है कि वे अपने बच्चों की तरफ ध्यान नहीं दे पातें हैं। धन कमाने की वयस्तता उन्हें अपने बच्चों से दूर ले जाती है। अपने बच्चों को समझने का और उनसे प्रेम करने का समय ही नहीं निकाल पाते। जो चीज घर से नहीं मिल पाती उसे बाहर ढूँढना पड़ता है। कुछ ऐसी ही पुरानी कहावत है मुझे ठीक से याद नहीं आ रही है। इस प्यार की कमी को पूरा करने के लिए युवा पीढ़ी निकल पड़ती है अपने घर से अपने-अपने वाहनों पर। और फिर ! और फिर शुरु होता है एक इंतजार ज्यादा लम्बा नहीं बस छोटा सा। आप के सोचने की देर है आपको आप जैसे बहुत मिलेगें जो घर से बाहर सच्चे प्यार की खोज में चले आये हैं। युवा कदम सही दिच्चा में आगे बड़ रहें हैं या नहीं यह बताने वाले तो धन कमाने में वयस्त हैं। उन्हें समझने वाले तो अपने पेच्चे में डूबे हैं ऐसे में युवा अपनी सोच को सही मान उस रास्ते पर अपने कदम आगे बड़ा तो देते हैं पर जिस रास्ते की मंजिल ही न हो उस रास्ते का भविष्य क्या सोचा जा सकता है। कुछ के कदम वापस घर को लौटते हैं और कुछ के! कुछ अपने रास्ते पर इतने आगे जा चुके होते हैं कि पीछे मुड़ने पर उन्हें अपना घर नहीं दिखता है। दिखता है तो रस्सी का फंदा, कूदने के लिए नदी और पीटने के लिए अपना माथा। ऐसे में कुछ अपनी किस्मत को कोसते हैं तो कुछ अपने उन मित्रों को जिन के कहने पर उन्होंने यह रास्ता चुना। भीगे होठ से शुरु हुआ कारंवा दिल के अरमां आंसुओं में बह गये पर खत्म।
परिणाम- प्यार में धोखा और माता-पिता के लिए बहुत सा दुखः
हल-सीधा सा रास्ता आत्महत्या। ऐसे में माता-पिता को किस कसूर की सज+ा दी जाती है सिर्फ इतनी कि वो अपने बच्चों को समय नहीं दे पाये और उन्हें समझ नहीं पाये। क्या इस कसूर की ये सज+ाऐं सही हैं ? क्या यह सज+ा कम है या बहुत ज्यादा ? ऐसे में मीडिया का क्या गया ?
वरुण आनन्द