Saturday, August 29, 2009

गृह युद्ध

विकसित होती तकनीक ने जहाँ एक ओर मानव जीवन को आसान बनने में कई योगदान दिये हैं वहीं एक नये युद्ध की नीव भी रखी। ÷÷गृह युद्ध''। युद्ध होता है तो बचाव करने वाले भी बीच में कूद पड़ते हैं। कभी उनकी रुचि युद्ध रोकने में होती है तो कभी युद्ध की आग में हवा देने की। ऐसे में बचाव पक्ष कई बार उस बन्दर की भूमिका अदा करता है जो दो बिल्लियों की लड़ाई में बाजी मार ले जाता है।
ऐसा ही एक युद्ध मेरे घर में भी होता है। कई बार बीच बचाव के लिए मम्मी को आना पड़ता है और यदि वह घर पर न हो तो पड़ोसी हमारा शोर सुन कर मामला पता करने आते हैं।
अब में उस युद्ध का वर्णन करता हूँ। मेरे घर में मेरी छोटी बहन और माता-पिता है । सब खुच्ची-खुच्ची रहते हैं। पापा तो बिजनेस के सिलसिले में ज्यादा तर घर से बाहर ही रहते हैं। घर में बचे हम तीनों। शान्ति और सुख के साथ अपना दिन व्यतीत करते हैं जब तक हम आदिमानव काल में हो और आधुनिक काल के आते ही युद्ध जैसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं। यहाँ आधुनिक काल से मेरा तात्पर्य घर में विद्युत धारा के प्रवाह से है। बिजली आधुनिक काल का वैसा ही आच्चिर्वाद है जैसा परमाणु हथियार, गोलियां और बम इत्यादि। बिजली के न होने पर मैं और मेरी बहन अपने-अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं यदि कोई कार्य न हो तो आपस में ही बात-चीत करके अपना दिन व्यतीत करते हैं। इंतजार करते हैं आधुनिक युग में प्रवेच्च करने का और जैसे ही आधुनिक युग आरम्भ होता है हथियार की तरफ दोनों ऐसे लपकते हैं जैसे एक पाकिस्तान और दूसरा हिन्दुस्तान। हथियार भी है तो कौन सा ? आधुनिक युग के एक विद्युत उपकरण को नियन्त्रित करने वाला रिमोर्ट। जी हाँ टी।वी. का रिमोर्ट। मेरा मानना है कि जैसे जैसे टी.वी. की तकनीक विकसित होती गई वैसे-वैसे गृह युद्ध के आंकड़े बढ़ते गये। बिजली आते ही हम एक दूसरे को दुच्च्मन समझ लपकते हैं उस हथियार की ओर। यदि हथियार सामने है तो सिर्फ लपकना बाकी है और यदि हथियार आँखों के सामने नहीं है तो पहले खोज होती है हथियार की। तकिये की नीचे, टी.वी. के ऊपर, कबड में कहाँ-कहाँ हथियार नहीं खोजते अब तक एक शूर वीर के हाथ हथियार लग ही जाता है इस प्रकार युद्ध का एक चरण पूरा हो जाता है। इसके बाद युद्ध का दूसरा चरण शुरू होता है। इस चरण में हिंसा मुख्य रुप से होती है। एक दूसरे के बाल नोचना, नाखून मारना, थप्पड़ जड़ना और यदि निगाह पड़ गई किसी जूते या चप्पल पर तो कोई भी महारथी इस हथियार के प्रयोग से नहीं कतराता। अब युद्ध भयंकर हिंसा का रूप धारण कर लेता है। दौड़ना-भागना, चीखना-चिल्लाना और फिर मद्द के लिए गुहार लगाना सयुंक्त राष्ट्र संघ को। मेरा मतलब है घर में फसाद रोकने वाला व्यक्तित्व। हमारी मम्मी। दोनो योद्धाओं की ओर से आवाज+ लगाई जाती है मम्मी.... मम्मी.....। सयुंक्त राष्ट्र संघ अपने कार्यालय यानि रसोई घर से अपना काम छोड़ कर आता है और दोनों को एक दूसरे से अलग करते हुए समझाने लगता है। यदि दोनों पक्ष भारत और पाकिस्तान नहीं मानते तो रख के दिया जाता है समझौता पत्र यानि एक-एक कन्टाप। इसके बाद शुरू होता है समझौते की नीतियों पर चलना। एक घण्टा टी.वी. का रिमोर्ट उसके हाथ में तो अगली बारी मेरी। इस तरह युद्ध निर्णायक स्थिति में पहुँच जाता है। यदि मम्मी घर में हुईं तो तो ठीक नहीं तो युद्ध के बीच में कूदता है अमेरिका यानि हमारे पड़ोसी। वो हमारा झगड़ा रोकते हैं और कई बार रोकने का प्रयास करते हुए दिखते हैं। फिर संयुक्त राष्ट्र संघ के घर पर आते ही उन्हें हमारी च्चिकायत लगवाते हैं और उनसे भी हमें डाँट पड़ती है और पड़ोसी मुल्ख यदि घर आये तो मम्मी उनका आदर सतकार किये बिन कैसे भेजे ! चाय-नाच्च्ता हमारे सामने करते हैं। हम डाँट की वज+ह से दुखी होते हैं और हमारे सामने संयुक्त राष्ट्र संघ पड़ोसी मुल्ख की तच्च्तरी में पकवान परोसती है।
फिर भी इस युद्ध के बाद यदि घर में संयुक्त राष्ट्र संघ नहीं है तो पाकिस्तान (यानि मुझे) भूख लगती है तो उसके लिए मैं भारत (अपनी बहन) को ही कहता हूँ और वह एक बार भी मना नहीं करती और जब कभी मैं घर से बाहर जाऊँ तो उसके लिए चॉकलेट लाना नहीं भूलता। फिर भी आधुनिक युग के आते ही हमारा युद्ध ठण्डा नहीं पड़ता। वैसे ही जैसे पाकिस्तान चीनी भारत की खाता है और भारत पान के पत्ते पाकिस्तान के फिर भी उगलते हैं एक दूसरे के लिए जहर।
यही है गृह युद्ध।
वरुण आनन्द

Monday, August 24, 2009

एक पत्र चुनाव विजेता के नाम

मननीय महोदय्‌,
इस वर्ष आपको लगातार तीसरी बार जीत हासिल हुई, इस बात का मुझे गर्र्व है। मैं आपसे यह सभी बातें स्वयं मिल कर कहना चाहता था। पर फिर सोचा कि अभी आप गाड़ी वालों, पेट्रोल वालों और लाउडस्पीकर वालों के बिलों की वज+ह से कुछ दिनों तक घर से बाहर नहीं निकलेंगे। आपके घर में रहने की मजबूरी आपकी आदत में तबदील हो जायेगी और इसके बाद आप हमें पाँच वर्षों के बाद ही दर्च्चन दे गें। पर मेरी च्चिकायतें इतनी बड़ी हैं कि मैं पाँच वर्षों तक इंतजार नहीं कर सकता क्या पता तब तक मेरी जीव आत्मा मेरे नच्च्वर शरीर को छोड़कर पलायन कर चुकी हो। मैं आपका शुभचिन्तक हूँ इस कारण आपको आपकी कमियां बताना चाहता हूँ ताकि आप अगले वर्ष पुनः जीत हासिल कर पाँच वर्षों के लिए अपने घर में नागरिकों की चिन्ताओं पर चिन्तन करने के लिए कैद हो सकें और आपके चिन्तन से हमारा उद्धार हो सके।
निच्च्िचत ही आपके घर में इस समय आपके मतदाताओं के द्वारा बुके भेजने का कार्यक्रम चल रहा होगा। पर ध्यान रहे जो आपको जीत की बधाई देते हैं वे अपके मतदाता नहीं होते। मैंने इसी वर्ष से ही अपना नाम मतदाता सूची में लिखवाया और अपने जीवन का पहला बहुमूल्य वोट आपके नाम किया। पर मैं आपकी जीत से बिल्कुल खुच्च नहीं हूँ, क्योंकि आप ने वोट मांगते समय जनता से जो वायदे किये थे वो पूरे होते नहीं दिख रहे। आपने वोट मांगते समय जनता की पीड़ा पर भावुक होकर आँसू बहाए थे जिससे प्रभावित होकर जनता ने आपको वोट दिये और आपने बहुमत से जीत पाई। आपने वायदा किया था कि हमारे शहर में बिजली की कमी है और आप जीतने के बाद एक तार सूरज से सीधे हमारे शहर के लिए खिचवाएंगे। हमारे शहर की सड़कों के खस्ताहाल का गुणगान तो आपने सुना ही होगा आपने कहा था यदि आप जीते तो स्वयं विष्णु अवतार की तरह बुलडोजर पर लद के आयेगें और सड़कों उद्धार स्वयं अपने हाथों से करेगे। आपने अपनी रैली में एक व्यक्ति। जिसके पिता को गुजरे दो बरस हो गये, पूछा था कि आपके पिता का क्या हाल है ? उसने उत्तर दिया था कि स्वर्ग से यहाँ कोई मोबाइल या एस।एम.एस की सुविधा नहीं है जब आप जायें तो आप ही उनकी खबर भिजवा दीजिएगा। आपने कहा था आपके जीतते ही मोबाइल का एक टावर स्वर्ग में भी लगवा देगें।
जब आप इतने पराक्रमी हैं तो आपको इन छोटे मोटे कार्यों को स्वयं करने की क्या आवच्च्यकता है ? आप तो अपने किसी चेले चपाटे को कह कर यह काम करवा सकते हैं। आपसे निवदेन है कि आप इन तुच्छ तृष्णाओं को छोड़ कर मेरे कष्टों की ओर अपना ध्यान दीजिए। हमारे शहर में टैंपो चालकों का आतंक बढ़ता जा रहा है कई बार वे वर्दी वालों से किराया मांगने की भूल कर बैठते हैं। आप उन्हें सचेत कर दें कि वर्दी वाले गुण्डों से गुण्डागर्दी न करें नहीं तो आप से बुरा कोई नहीं होगा। हमारे शहर में देच्ची शराब के ठेके और जुऐं के अड्डो पर आपके वर्दी वाले दूत मनचाहा हफ्ता वसूल करते हैं कृपया उन्हें आदेच्च दें कि हफ्ता की राच्चि को निच्च्िचत किया जाये ताकि आपके सभी दूत प्रसन्न रहें।
एक गुजारिच्च यह भी है कि जब कभी हमें यातायात नियमों को तोड़ते समय पकड़ा जाता है तो चालान से तो हम आपके राज में बच जाते हैं पर वर्दी वाले सिर्फ ५० रुपये में मान जाते हैं। कितना समय हो गया आपका राज आये पर उनका भाव बढ़ता ही नहीं, कृपया भाव १०० रुपये करवाये ताकि वर्दी वाले अपने बच्चो को जल्द बाइक दिला सकें।
अन्त में एक अनुरोध यह है कि मन्दिर में अमीरों के लिए आरक्षण की व्यवस्था करवाई जाये उन्हें में पक्तियों न लगा कर सीधे भगवान के दर्च्चन के लिए भेजा जाये।
पत्र समाप्त करते हुए आपसे विनती करूँगा कि मेरी च्चिकायतों पर ध्यान दें तथा आपके लिए अगले चुनाव में जीत की कामना उस ईच्च्वर से करता हूँ।
आपका शुभचिन्तक
देवदास (एक मतदाता)