Tuesday, October 14, 2008

समय बदल रहा है!

समय बदल रहा है, और हम! जमाने के साथ रहना है तो समय के साथ चलना है। पर क्या समय के साथ चलने में खुद को भूल जाना सही है?समय तो तेजी से बदल रहा है सब जानते हैं और हमारे भीतर कितने परिवर्तन आयें हैं कभी किसी ने सोचा है नहीं। मैंने भी नहीं सोचा था पर जब सोचा तो वो परिवर्तन कुछ ऐसे थे।सत युग, त्रेता युग सब बीत गये वैज्ञानिक युग का समय है हर घर में कम्प्यूटर है। कम्प्यूटर है तो सॉफटवेयर भी चाहिए। पुराने हो गये तो नये वर्सन के चाहिए। फोटोच्चॉप ७.० है तो ७.२ चाहिए, कोरल ११ है तो १२ चाहिए। सब कुछ कितना हाईटेक हो गया है। शायद अब हमें उस दिन के लिए तैयार रहना चाहिए जब ग्रन्थ और पुराण भी वर्सन में मिलेगें। हनुमान चालीस वर्सन ४, गीता वर्सन ५.२ और रामायण वर्सन १३। यह सिर्फ कल्पना है पर कम्प्यूटर भी कभी सिर्फ कल्पना ही थी। समय बदल गया है तो सोच भी बदलेगी खास तोर से युवाओं की सोच। इंक पैन की जगह जैल पैनों ने ले ली तो हेयर ओइल की जगह हेयर जैल ने। कभी समय था यज्ञ, हवन और तपस्या का। अब समय है डिस्को, डीजे और पब का। जेम्स बॉड के फैन तो मिलेगें पर हनुमान जी के भक्त कहाँ? गद्य में शोले शामिल हो गई है। जल्द ही काव्य में सूर, तुलसी और कबीर की जगह जावेद आख्तर और सयैद कादरी आ जायें तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। अगर हिन्दी की परिक्षा में भीगे होठ की व्याखया करने को आये तो किस बोर्ड में २ लाख बच्चे हिन्दी में फेल होगें। गानों के बोल तो याद हैं पर श्लोक और दोहों के शब्द सही जगह पर कहाँ। हिमेच्च, सोनू को तो सभी जानते हैं पर तानसेन और बैजूबाबरा का नाम कभी सुना नहीं। कभी समय था मन्दिरोंमें भक्त दर्च्चन के लिए जाते थे, फिर समय आया मन्दिर में जोड़ों को दिखाने को। पर अब मन्दिर कौन जाये जब पाटनर मिलें डाण्डिया नाईट में। गानों के रीमिक्स का दौर है अब तो भजन भी ढोल मिक्स चाहिए। अगर जीन्स घुटने से फटेगी नहीं तो गर्लर्फैन्ड मिलेगीमिलेगी नहीं। खाने में घर पर बनी चपाटी से ज्यादा रेस्टोरेन्ट का गर्म कुत्ता (हॉट डॉग) पसन्द है। युवाओं में जाघियां दिखाने की होड़ मची है। तभी तो लोग जानेगें कि आपने ६०० रुपये की जॉकी पहनी है न कि २५ रुपये की अन्डरवियर। रईसी दिखाने का आसान फंडा बाईक में cc जितनी ज्यादा। पेट्रोल की परवाह नहीं पर स्टाइल से कोई समझौता नहीं। रिपोर्ट कार्ड में अंक ५० प्रतिच्चत से कम हैं पर माोबइल ५० हजार से सस्ता क्यों? घर पर रामायण कौन देखे जब टी.वी. में आये बिग बॉस। पर हमें समय के साथ चलना है। सह तो बात रही युवाओं की जिससे हम अपने माता-पिता सॉरी अपने मोम-डेड से जनरेच्चन गैप कह कर बच निकलते हैं पर बढ़ों को क्या वो भी तो समय की दौड़ में शामिल हैं। अब क्लास लें टीचरों की तो वो गुरु है हमारे हमेच्चा हमसे दो कदम आगे। स्कूल हिन्दी मीडियम हो या इंगलिच्च हिन्दी कोई टीचर नहीं जानता। अगर कोई जानता भी है तो बोलने की हिहिम्मत कहाँ। शर्म नहीं आयेगी। अंग्रेजी मीडियम स्कूलों में गलत इंग्लिच्च या हिन्दी का प्रयोग किया तो स्टूडेंट की खैर नहीं। वहीं हिन्दी मीडियम स्कूलों में गलत हिन्दी बोलना फैच्चन है। चरण स्पर्च्च की जगह ली गुड मोर्निंग ने तो जलपान की रिफरेच्चेमेंण्ट नें। रिफरेच्चमेंण्ट की बात तो समझ आती है पर जलपान की बात आये तो हँसी आती है हिन्दी शब्द जो है अब प्रचलन में कहाँ! जल्द समय आयेगा जब कहेगें हिन्दी इच आउट ऑफ फैच्चन। (हिन्दी अब प्रचलन में नहीं है।) गुरुओं के पैर तो अब कोई छूता नहीं और गलती से किसी ने छू लिये तो नजदीक खड़े लोग आप पर हसेगें जरुर। हिन्दी की तो दुलगती हो गई है और इसके पीछे युवाओं से ज्यादा टीचर्स का हाथ हैं। समय बदल रहा है तो आवाज+ कैसे ना बदले। हिन्दी से नफरत का आलम यह है कि हिन्दी भी लोग इंग्लिच्च मिक्स पढ़ना माँगते हैं तभी तो अखबारों ने नयी योजना बनायी है अंगे्रजी मिक्स हिन्दी अखबार। हिन्दी का ज्ञान सही रखते नहीं है और अंगे्रजी का प्रयोग जोरों से करते हैं। भीड़ से खुद को अलग दिखाने के लिए हम उसी भीड़ में तेजी से चल रहें हैं उससे अलग नहीं।कहते हैं आगे बढ़ने के लिए एक पैर पीछे करना पड़ता है पर हम यह क्यों भूल जाते हैं कि इससे अगला कदम पीछे वाले पैर के बिना नहीं उठेगा। हम उस पैर को पीछे छोड़ नहीं देते हैं आगे लेकर आते हैं। पर बदलते समय के साथ हम अपना पीछे का पैर आगे लाना भूल रहें हैं तभी तो अपनी सभ्यता अपनी संस्कृति को छोड़ कर दूसरों की संस्कृति की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। अगर जल्द ही अपने पीछे वाले पैर की याद हमें नहीं आयी तो एक ही नतीजा होगा हम सब मुह के बल गिरेगें। न अपनी संस्कृति के जानकार होगें न दूसरे की संस्कृति अपनाने लायक। समय के साथ परिवर्तन ठीक है पर इतना नहीं कि हम इस परिवर्तन में खुद को भूल जायें। अपनी संस्कृति का ध्यान रखें और हिन्दी का दुरगती न होने दे। तभी समय के साथ हम कदम से कदम मिलाकर बिना मुँह के बल गिरे चल सकते हैं। खुद को भूले बिना।
वरुण आनन्द