कई दिनों से मैंने कोई लेख नहीं लिखा। इसका कारण है मेरा दुखः। मैं हर दुखः का सामना मुस्कुरा के करता हूँ, भगवान ने मुझे कुछ ऐसा ही बनाया है। पर इन दिनों जो दुखः मुझे घेरे हुए है उसका सामना मैं नहीं कर पा रहा हूँ। शायद इसी कारण से कुछ लिख भी नहीं पा रहा हूँ। दो महान भारतीय खिलाड़ियों का सन्यास मेरे दुखः का कारण है। दादा और जंबो अब भारतीय टीम में नहीं खेलेगें इससे बड़े दुखः की बात मेरे लिए और क्या हो सकती है। दादा हमेच्चा से ही मेरे प्रीय बल्लेबाज रहें हैं और जंबो की तारीफ मेरे मुँह से छोटे मुँह बड़ी बात होगी। इन दोनों खिलाड़ियों ने अपने जीवन के कई साल भारत की सेवा में बितायें हैं। भारतीय टीम में इनका योगदान कभी भी भुलाया नहीं जा सकेगा और इन दोनों खिलाड़ियों को कौन भारतवासी अपनी यादों से और अपने दिल से निकालना चाहेगा। यह दोनों महान खिलाड़ी humesha हमारें दिलों में रहेगें।
आज मैं दुखीः हूँ पर रो नहीं रहा हूँ। जरुरी नहीं है कि दुखी होने पर आँखों से आँसू निकलें। आज मेरे आँसू मेरी आँखों से नहीं मेरी कलम से निकल रहें हैं। पर मैं अपने दुखः को यह सोच कर कम कर लेता हूँ कि जो आया है वो जायेगा भी। दादा और जंबों ने भारतीय क्रिकेट टीम की बहुत सेवा की अब इतना तो हक बनता ही है वो आराम करें। शायद यही सोच कर मैं अपने दुखः को कम करता हूँ और उनका भावी जीवन सुखमय हो इसकी कामना भगवान से करता हूँ। उनके सुख को अपने दुखः से ज्यादा देख कर मैं अपने दुखः को कम करुँगा।
मैंने अपने दुखः को आप के साथ बाँटा क्योंकि मैं यह मानता हूँ कि एक अच्छा साथी दुखः को आधा और सुख को दो गुना कर देता है। आप के साथ से मेरा दुखः कम हो जायेगा। मैंने आप को अपने दुखः में शमिल किया इस बात के लिए मैं आप से माफी चाहता हूँ पर इस बात का वायदा करताा हूँ कि अपने सुख मैं सबसे पहले आप को ही शामिल करुँगा।
Monday, November 10, 2008
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