Tuesday, January 26, 2010

मुझे प्यार हुआ

हिन्दी और हिन्दुस्तान के बाद अब बारी आ ही गयी उसकी। बूढ़ा होने से पहले एक बार तो कर ही सकता हूँ प्यार किसी लड़की से। उसका नाम......। उसका नाम लेकर उसे बदनाम नहीं करना चाहता। बदनामी इस बात की कि उसे प्यार करने वाला कोई और नहीं एक लेखक है। सोचा अपने होने वाले ससुर से उसका हाथ माँग लूँ। पण्डित से मुहूर्त निकलवाया। शुक्रवार का दिन ठीक है। आज सोमवार है। चार दिन का इंतजार, फिर वो मेरी। चार दिन र्प्याप्त होते हैं किसी भी विषय की परीक्षा की तैयारी के लिए। बन्द कमरे में शान्ती और पूरी लगन के साथ तैयारी की। नाम ? वरुण। क्या करते हो ? जी लेखक हूँ। पिता जी ? निजी व्यवसाय है। कितना कमाते हो ? रोज एक। एक क्या, एक हजार ? जी नहीं रोज एक लेख लिखता हूँ। तो ? तो बस। यहाँ क्यों आये हो ? आपकी बेटी से शादी करना चाहता हूँ। पूरे कान्फीडेन्स से बोला मैंने। पर जाने ससुर जी को क्या लगा ? बोले यह किताब नहीं जीवन है। शादी करने आये हो। किसी लायक हो ? कमरे में वो थे और मैं। जो रट् कर आया था राम का नाम लेकर बोलना शुरू किया।
मैं वरुण आनन्द। एक लेखक हूँ। भारतीय हूँ। राच्चन कार्ड लाया हूँ, पहचान के लिए। अच्छे परिवार से हूँ। सभ्यता, संस्कार जानता हूँ तभी तो आते ही आपके चरण कमलों को हाथ लगाया। मैं ज्यादा नहीं कमाता पर सम्पत्ति बहुत है। कोई चुनावी उम्मीदवार नहीं, जो चुनाव घोषणा पत्र में अपनी सम्पत्ति कम दिखाँऊ। मेरे पिता जी के पास नियमित रुप से आयकर का तगादा आता है। मकान अपना है। और क्या कहूँ। बस जो बोलना था बोल दिया। अब आप बोलें। बैठो। आखिर पन्द्रह मिनट के बाद उन्हें याद आया कि मैं खड़ा हूँ। चलो बैठने को कहा तो बैठ गया।
कमरे के अन्दर आवाज लगायी। अजी सुनती हो रमेच्च की अम्मा। दो कप चाय लाना गुड़ की। बेटा तुम तो जानते हो ही चीनी के दाम अब गुड़ की चाय से काम चलाना पड़ता है। मैंने कहा कोई बात नहीं। कभी-कभी स्वाद बदलना भी चाहिए। उन्हें लगा हमारे यहाँ चीनी की चाय बनती है और आज हमारी बेटी के लिए गुड़ की चाय पीने को तैयार है। मैंने मन में सोचा आज बहुत दिनों बाद मीठी चाय पीने को मिलेगी। गुड़ की हुयी तो क्या फीकी चाय से तो बेहतर है। प्लेट में चाय और नाच्च्ता। चार फीके बिस्कुट और 6-7 नमकपारे। देखने में उनका घर अच्छा लग रहा था। शायद यह नाच्च्ता महंगाई की देन हो या इस कारण से कि मैं उन्हें पसन्द नहीं आया। गुड़ की चाय का स्वाद। इससे बेहतर तो फीकी चाय होती है।
तो बेटा नौकरी के कुछ आसार हैं ? जल्द ही मिलेगी। कई समाचार पत्रों में आवेदन किया है। भगवान करे ऐसा ही हो। इतने में एक लड़की ने बाहर से आवाज लगायी। पिता जी ... पिता जी। उन्होंने कहा बेटा जरा कड़+ी खोलना तो। कमरें में एक आठवीं या नौंवी कक्षा की लड़की स्कूली बैग टांगे आयी। ससुर जी बोले मिलों मेरी बेटी से। यह हमारी इकलौती बेटी है। मेरे आँखें बड़ी हो गयीं। यह ? लगता है कि मैं गलत घर में आ गया। अब खिसकुँ कैसे ? ससुर जी माफ कीजिए, बाबू जी बोले तो मैं यह रिच्च्ता पक्का समंझू ? गुड़ की मिठास से शायद मेरा मुँह चिपक गया हो। जब उनका मुँह खुला तो बोले जाने से पहले चाय और नाच्च्ते के 10 रुपये मेज पर रख देना।वहां से बाहर निकला तो समझ आया ये मेरी उसका नहीं बल्कि उसके माली का घर था। उसके प्यार में अन्धा गलती से कहीं और घुस गया। उसका घर माली के घर के पीछे था और काफी बड़ा। अन्दर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया और घर लौट गया परीक्षा की तैयारी में लग गया।

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